एकाउंटिंग क्या है।
Introduction of accounting in Hindi वर्तमान युग अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियों का युग है फलतः उद्योग एवं वाणिज्य के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए हैं प्रत्येक व्यावसायिक एवं गैर व्यावसायिक संगठन जो आकार में छोटा हो या बड़ा हो प्रतिदिन सैकड़ों व्यापारिक लेन-देन सम्पन्न करता है। इन सारे लेन-देनों को याद रखना सम्भव नहीं है, क्योंकि मनुष्य की स्मरण शक्ति सीमित है, यही कारण है कि प्राचीनकाल से ही यह कहावत प्रसिद्ध हैं "पहले लिख, पीछे दे, भूल पड़े तो कागज से ले।" अर्थात मानव ज्यादा लेनदेन को याद नहीं रख सकता और उसे एक कॉफी या किसी अन्य जगह नोट कर के लिख देता है जिसे एकाउंटिंग कहते हैं
एकाउंटिंग का अर्थ (Meaning of Accounting)
According से आशय व्यावसायिक सौदे एवं घटनाओं के मौद्रिक रूप का लेखन (Recording), वर्गीकरण (Classification), संक्षिप्तीकरण (Summarising), परिणामों की व्याख्या व निर्वचन (Interpretation) करने तथा सूचनाएँ सम्बद्ध पक्ष को सम्प्रेषित करने की विधि से है।
एकाउंटिंग की परिभाषा accounting meaning
"लेखांकन एक कला है, जिसमें वित्तीय लेन-देनों एवं घटनाओं को प्रभाव पूर्ण ढंग से मौद्रिक रूप में लिखने, वर्गीकृत करने एवं संक्षिप्त करने का कार्य किया जाता है और उनके परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।"
एकाउंटिंग की विशेषताएँ (Characteristics of Accounting)
2. वित्तीय या मौद्रिक व्यवहार (Financial or Money Transaction)-एकाउंटिंग में केवल उन्हीं व्यवहारों घटनाओं का लेखांकन किया जाता है जो वित्तीय प्रकृति के हो अर्थात् जिन्हें मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।मौद्रिक व्यवहार कितने ही महत्वपूर्ण क्यों न हो इसका लेखांकन नहीं किया जाता है।
3. निश्चित पुस्तकें (Books of Account) व्यावसायिक सौदों को कुछ निश्चित पुस्तकों में ही लिखा है। जैसे-दोहरा लेखा प्रणाली में जर्नल व लेजर और महाजनी प्रणाली में कच्ची रोकड़ बही, पक्की रोकड़ बही खाताबही आदि।
4. लेखा प्रणाली (System of Accounting)- एकाउंटिंग में एक निश्चित प्रणाली के आधार पर लेखे किए जाते हैं। भारत में दो प्रणालियाँ अधिक प्रचलित है अंग्रेजी लेखांकन प्रणाली या दोहरा लेखा प्रणाली तथा महाजनी या भारतीय बहीखाता प्रणाली।
5. नियमित लेखा (Contineous Accounting) - व्यावसायिक व्यवहारों का लेखा नियमित रूप से तिथिवार निर्धारित नियमों का पालन करते हुए किया जाता है।
एकाउंटिंग का उद्देश्य accounting object
1.व्यापारिक परिणाम या लाभ-हानि ज्ञात करना (To know the trade result or profit & loss ) - लेखा पुस्तकों की सहायता से व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाता (Trading & Profit and Loss A/c) बनाकर व्यापार के संचालन से प्राप्त लाभ या हानि ज्ञात किया जा सकता है जिसकी सहायता से उचित व्यावसायिक निर्णय लिया जा सकता है।
2.व्यापार की आर्थिक एवं वित्तीय स्थिति की जानकारी (Knowledge about the Economic and financial position of (business) - लेखांकन से व्यापार की सम्पत्तियों एवं दायित्वों का ज्ञान सरलता से हो जाता है इससे आर्थिक चिट्ठे तैयार कर व्यापार की वास्तविक आर्थिक एवं वित्तीय स्थिति ज्ञात की जा सकती है। बैंक, वित्तीय संस्थाएँ एवं पूर्तिकर्त्ता व्यवसाय के चिट्ठे में प्रदर्शित वित्तीय स्थिति के आधार पर व्यवसाय को माल या ऋण देने का निर्णय लेते हैं
3. कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति (For the fulfilment of legal requirements) -व्यावसायिक संस्थाओं (फर्मों एवं कम्पनियों) का वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये लेखा करना अनिवार्य है, इन लेखों का प्रयोग लाभ, लाभांश निर्धारण एवं करारोपण के लिये किया जाता है। कम्पनी अधिनियम 1956 के अनुसार प्रत्येक कम्पनी को अधिनियम के अनुसार लेखांकन करने के साथ अंकेक्षण कराना भी अनिवार्य है।
4. उपयोगकर्त्ताओं को वित्तीय सूचनाएँ उपलब्ध कराना (To provide financial information to users) - लेखांकन का एक उद्देश्य उपयोगकर्त्ताओं को आवश्यक वित्तीय सूचनाएँ उपलब्ध कराना भी है। 4. सम्पत्ति व दायित्व का ज्ञान। विनियोजकों, सरकार, व्यवसाय के प्रबन्धकों, बैंकों, वित्तीय संस्थाओं शोधकर्त्ताओं एवं आम जनता को वित्तीय सूचनाओं या आँकड़ों की आवश्यकता विभिन्न निर्णयों के लिए होती है।
5. भावी योजनाओं के निर्माण में सहायक (Helpful for the future plan's)--लेखांकन द्वारा व्यावसायिक व्यवहारों तथा इनसे होने वाले लाभ एवं हानियों तथा अन्य वित्तीय आँकड़े उपलब्ध होते हैं। जिसके आधार पर भविष्य हेतु नीतियों एवं योजनाओं का निर्माण किया जा सकता है।
सामान्य उद्देश्य (General objects)
1. अन्तिम रहतिया का ज्ञान (Knowledge of closing stock)-व्यापारिक वर्ष के अन्त में कितना अन्तिम रहतिया (शेष अनबिके माल) है, इसकी जानकारी लेखांकन से प्राप्त हो जाती है। 2. लेनदारों व देनदारों का ज्ञान (Knowledge of creditors and debtors)-किसको कितना देना है अर्थात् कुल लेनदार कितने हैं और कितना लेना है या कुल देनदार (Debtor) कितने हैं, यह भी लेखांकन से तुरन्त पता लग जाता है। 3. नगद राशि की जानकारी (Knowledge of cash-in-hand) - किसी समय विशेष पर कितनी नगदी शेष (Cash-in-hand) है और बैंक में क्या शेष (Cash at Bank) है की जानकारी भी लेखांकन के माध्यम से प्राप्त की जाती है।
4. सम्पत्ति व दायित्व का ज्ञान (Knowledge about Assets and Liabilities)- लेखांकन की सहायता से व्यापार में एक निर्धारित समय के बाद कितनी पूँजी लगी और व्यापार में सम्पत्ति (Assets) तथा दायित्व (Liabilities) की क्या स्थिति है, इसे जानने के लिए पुस्तपालन करना आवश्यक होता है।
5. कर दायित्वों की जानकारी (Knowledge about tax liabilities)-व्यवस्थित एवं विधिवत लेखांकन के आधार पर बिक्री कर, उत्पादन कर, आयकर आदि का समय पर निर्धारण किया जा सकता है।
6. व्यापारिक आवश्यकताओं का ज्ञान (Knowledge about business requirements)-लेखांकन को उपयुक्त प्रणाली से व्यवसाय की वर्तमान व भावी आवश्यकताओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
एकाउंटिंग का लाभ (accounting profits )
1. पाददाश्त हेतु (Replacement of memory)- व्यापार में प्रतिदिन असंख्य सौदे सम्पन्न होते हैं जिन्हें वार रखना कठिन है अतः इन्हें हिसाब किताब की पुस्तकों में लिखकर रखने से कोई गड़बड़ी नहीं होगी और उसे प्रत्येक लेन-देन का तुरन्त ज्ञान हो जाएगा।
2. कर निर्धारण में सहायक (Helpful in tax determination)- उत्पादन कर, बिक्री कर, आयकर आदि का सही-सही निर्धारण करने में विधिवत् रखे गए हिसाब-किताब सहायक होते हैं।
3. व्यापारिक लाभ-हानि जानना (Knowledge of profit & loss)- लेखांकन द्वारा व्यापार व लाभ-हानि खाते निश्चित समय के अन्त में बनाकर व्यापारी अपने व्यापार में लाभ या हानि मालूम कर सकता है। यदि हानि हो रही हो के कारणों को ज्ञात कर नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है।
4. तुलनात्मक अध्ययन सम्भव (Comparative study is possible)- उचित रीति से हिसाब रखने पर विभिन्न अवधियों के लेखांकन आँकड़ों की तुलना करके व्यापार में आवश्यक सुधार किये जा सकते हैं।
5. उत्पाद वस्तुओं की कीमत लगाना (Determination of product price)- यदि व्यापारी माल स्वयं तैयार करता है और उन सब का हिसाब उचित रीति से बनाकर रखता है, तो उसे माल तैयार करने की लागत मालूम हो सकती है। लागत के आधार पर वह अपनी निर्मित वस्तुओं का विक्रय मूल्य निर्धारित कर सकता है। 6. आर्थिक स्थिति का ज्ञान (Knowledge of economic position)- उचित लेखांकन अभिलेख से व्यापारी हर समय यह मालूम कर सकता है कि उसकी व्यापारिक स्थिति सन्तोषजनक है अथवा नहीं। 7. व्यापार बेचने में आसानी (Facilitates sale of business) - ठीक-ठीक बहीखाते रखकर एक व्यापारी अपने कारोबार को बेचकर किसी सीमा तक उचित मूल्य प्राप्त कर सकता है। साथ ही साथ खरीदने वाले व्यापारी को भी यहः सन्तोष रहता है कि उसे खरीदे हुए माल का अधिक मूल्य नहीं देना पड़ा।
&. ऋण लेने में सुविधा (Facilities in taking loan)-व्यवस्थित रूप में रखे गये हिसाब-किताब का प्रदर्शन करके व्यापारी वित्तीय स्थिति स्पष्ट कर सकता है तथा आवश्यकतानुसार वित्तीय संस्थाओं से सरलतापूर्वक ऋण प्राप्त करता है। 9. ख्याति के मूल्यांकन में सहायता (Helpful in valuation of goodwill)-विभिन्न कार्यों के हिसाब-किताब के आधार पर किसी व्यवसाय की ख्याति का मूल्यांकन आसानी से किया जा सकता है।
10. महत्वपूर्ण सूचना प्राप्त होना (Provides important information)-लेखांकन की सहायता से व्यापारी अपने लाभ-हानि, आय-व्यय, लेनदार-देनदार, सम्पत्ति एवं दायित्व आदि का पता लगा सकते हैं तथा वांछित उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं।
11. कर्मचारियों पर नियन्त्रण (Control over employees)-व्यवस्थित हिसाब-किताब की सहायता में कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली त्रुटियों, छलकपट तथा जालसाजियों का पता लगाने में सरलता रहती है और इस प्रकार कर्मचारियों पर प्रभावपूर्ण नियन्त्रण किया जा सकता है। साथ ही उनकी कार्यक्षमता का भी परीक्षण किया जा सकता है। 12. न्यायालय में प्रमाण (Evidence in court)-उचित रीति से रखे गए लेखांकन अभिलेख आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय के प्रमाण के तौर पर रखा जा सकता है। व्यापारी को दिवालिया घोषित होने के लिए लेखा-पुस्तकें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। 13. विवादों का निपटारा (Settlement of Disputes)-विधिवत रखे गए हिसाब-किताब व्यापारी और उसके ग्राहकों के मध्य मतभेद के निपटारा में सहायक होते हैं
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